AMAN AJ

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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-32

   

    अध्याय-11
    रुका हुआ समय
    भाग-1

     ★★★
    
    रुके हुए समय में आसपास की सारी चीजें रुक चुकी थी। हालांकि वह सब धीमी गति से हो रही थी मगर उनकी गति इतनी धीमी की थी कि वह रूकी हुई ही प्रतीत हो रही थी। 
    
    रुके हुए समय में आर्य के शरीर में अभी भी हलचल हो रही थी। मगर ऐसे जैसे वह खुले वातावरण में नहीं बल्कि किसी पानी से भरे समंदर में हो। 
    
    हिना, आयुध, आचार्य वर्धन और अचार्य ज्ञरक सब पूरी तरह से जम चुके थे। उनके शरीर में नाममात्र भी हलचल नहीं हो रही थी। जो चीज जहां थी वहीं की वहीं रह गई थी। ‌जादू से निकलने वाले धुएं और उनकी तरंगों में भी किसी तरह का परिवर्तन नहीं हो रहा था।
    
    आर्य अब उस बात पर विचार करने लगा जो उसे इस रुके हुए समय से पहले कही गई थी। उसे किसी भी तरह रोशनी की तलवार को हासिल करना था। आर्य ने अपनी आंखों को बंद किया और फिर खोलते हुए तेजी से सामने वाले दरवाजे की ओर गया। 
    
    इस रुके हुए समय में उसकी तेज चलने वाली क्षमता काम कर रही थी। उसे अपनी पहले वाली जगह से दरवाजे तक आने में पलक भर का समय लगा था। यह देखकर आर्य को खुशी हुई, उसके तेज क्षमता उसके काफी काम आसान करने वाली थी।
    
    उसने टूटी हुई आचार्य वर्धन की छड़ को अपने हाथ में ही पकड़े रखा और किले से बाहर जाने लगा। किले से बाहर जाने के लिए वह उसी रास्ते का इस्तेमाल कर रहा था जिस रास्ते से वह हिना और आयुध के साथ आया था। 
    
    इस रास्ते में विपरीत क्रम में चलते हुए वह सबसे पहले अंधेरी खूंखार आत्मा वाली जगह में गया। यहां रुके हुए समय का असर उन पर भी हुआ था। सभी की सभी अंधेरी आत्माएं या तो हवा में इधर-उधर रुकी हुई थी, या ऊपर छत पर उनमें कोई भी हलचल नहीं हो रही थी। आर्य ने इस बात का शुक्रिया अदा किया कि कम से कम उसे यहां इन से पंगा नहीं लेना पड़ेगा। इसके ठीक बाद आर्य मौत के गलियारे से निकला। यहां उसके चलने पर किसी भी तरह की आग नहीं निकली। रुके हुए समय में आग के निकलने वाली घटना नाममात्र गति पर हो रही थी। आर्य यहां से भी सुरक्षित निकल गया। 
    
    इसके बाद वह उस जगह पर आ गया जहां पर उसने एक जिंदा मूर्ति का काम तमाम किया था। यहां से आगे उसे ऊपर जाना था जिसके लिए उसे किसी चीज की आवश्यकता थी। किसी ऐसी चीज की आवश्यकता जिसे वह नीचे रख ऊपर चढ़ सके। इसके लिए उसने वहीं से एक बड़ी सी मूर्ति को खिसकाना शुरू कर दिया। 
    
    उसने मूर्ति को खिसकाते हुए उसे टूटे हुए दरवाजे से पार किया और उस जगह ले आया जहां वह तीनों ही ऊपर से नीचे गिरे थे। उसने मूर्ति को उस जगह के ठिक नीचे कर दिया। ऐसा करने पर मूर्ति के तौर पर एक ऐसा रास्ता बन गया जिससे वह ऊपर जा सके।
    
    आर्य मूर्ति के ऊपर चढ़ा और फिर उसके ऊपर चढ़कर ऊपर वाले गलियारे वाली जगह पर पहुंच गया। यहां वह तुरंत बाहर की तरफ दौड़ा। लेकिन जैसे ही वह बिना फर्श वाले कमरे के पास आया उसे रुकना पड़ा। 
    
    बिना फर्श वाले कमरे को पार करने के लिए उसके पास यहां कोई भी साधन नहीं था। आर्य ने अपने इधर उधर देखा। यहां उसे किसी तरह का साधन नहीं मिला। यह उसके लिए एक मुश्किल चुनौती थी। 
    
    आर्य वहीं खड़े रहकर सोचने लगा। उसे याद आया कि जब वह जंगल में रहता था और अपने बाबा के साथ नदी को पार करना होता था, तो वह अक्सर अपनी तेज गति का इस्तेमाल करता था। अपनी तेज गति में वो पीछे से दौड़ता हुआ आता था और फिर कूदता था। इस कुदने की वजह से वह काफी चौड़ी नदी को भी पार कर लेता था। यह सोचकर उसने बिना फर्श वाले कमरे को देखा। बिना फर्श वाला कमरा कम से कम उसके द्वारा सोची गई नदी से तो कम ही चोडा़ था। 
    
    आर्य तुरंत गलियारे में पीछे गया और अपने लिए एक अच्छी खासी दूरी बना ली। इसके बाद उसने अपनी आंखें बंद की और फिर उन्हें खोलते हुए दौड़ने लगा। इस बार उसकी गति पहले वाले दौड़ने वाली गति से भी ज्यादा थी। फर्श वाले कमरे के पास आते ही उसने छलांग लगा दी, छलांग लगाने के बाद वह उसके ऊपर से कूदता गया और दूसरी ओर जाकर उसने अपने कदम रखे। वह अपनी इस कोशिश में कामयाब हो गया था। उसने बिना फर्श वाले कमरे को पार कर लिया था।
    
    इतना सब करने के बाद उसने चमकने वाले गलियारे को पार किया। चमकने वाले गलियारे को पार करने के बाद वह किले के उस दरवाजे के पास आ गया जो उसे बाहर लेकर जाने वाला था। 
    
    इस वक्त दरवाजा पूरी तरह से बंद पड़ा था। आर्य ने यहां पहुंचते ही दरवाजे के ऊपर देखा। दरवाजे के अंदर की ओर भी वैसे ही निशान बने हुए थे जैसे बाहर की ओर बने हुए थे। यहां दरवाजे के ऊपर आधे सूरज का निशान भी था। आर्य आधे सूरज के निशान को देखते ही समझ गया उसे क्या करना है। उसने तुरंत अपने हाथ में पकड़ी हुई टुटी छड़ कों ऊपर किया और उस आधे सूरज पर रोशनी गिराई। उसके ऐसा करने से सूरज रोशनी से चमकने लगा। सूरज के चमकने पर दरवाजे में हलचल होने लगी, और वह खुलने लगा। मगर उसके खोलने की गति काफी कम थी। 
    
    इससे पहले दरवाजा पूरा खुलता, आर्य आगे बढ़ा और उसने दरवाजे को खींच कर अपने इस्तेमाल जितना खोल लिया। दरवाजे के अंदर से उसके खोलने पर दो जनों के आने जाने का रास्ता बन गया था। आर्य तुरंत उस रास्ते से अपनी तेज गति से निकल गया।
    
    किले से बाहर आ जाने के बाद आर्य उस गुफा की ओर जा रहा था जहां उसे रोशनी वाली तलवार को हासिल करना है। वह जगह जहां अचार्य ज्ञरक के हिसाब से ऐसे जादुई मंत्रों का इस्तेमाल किया गया है जिस पर रुके हुए समय का असर भी नहीं पड़ता। उसे वहां सावधानी से तलवार को हासिल करना था।
    
    ★★★
    
    जिस तरह से अंदर किसी भी चीज में किसी भी तरह की हलचल नहीं हो रही थी, उसी तरह बाहर आश्रम में भी ऐसा ही कुछ था। बाहर भी किसी चीज में किसी तरह की हलचल नहीं हो रही थी। सिर्फ एक आर्य ही था जो हलचल कर पा रहा था।
    
    आर्य तेजी से किले से दूर होते हुए गुफा की ओर जा रहा था। जल्द ही वह गुफा के पास पहुंच गया जहां उसे गुफा के अंदर जाने वाला रास्ता दिखा। फिलहाल तो उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखाई दे रहा था। 
    
    उसके पास रोशनी वाली छड़ थी तो उसने उसे आगे करते हुए अंधेरे में अपने लिए रास्ता ढूंढा। अंधेरे में रास्ता ढुंढते हुए वो गुफा में आगे चल पड़ा। गुफा की दीवारें यहां की मिलने वाली बाकी दीवारों की तरह ही पथरीली थी। मगर फर्श पर जरूर पथरीली चट्टानों की बजाय संगमरमर के चोरस टुकड़े देखने को मिल रहे थे। अच्छे से सजाकर फर्श को अद्भुत रूप दिया गया था।
    
    आर्य संगमरमर के फर्श पर पैर रखते हुए गुफा में तकरीबन कुछ ही दूर आया होगा कि अचानक उसे अपने सामने लाल रंग के अजीब से चक्कर दिखाई दिए। 
    
    सभी अजीब से चक्कर आधे दीवारों में थे और आधे बाहर। उनके सिरों पर नुकिले छोर थे जो घूम रहे थे। इन सबके बीच थोड़ा सा ही रास्ता था जो सिर्फ कुछ ही समय के लिए रास्ते के रूप में होता था, इसके बाद चक्कर का दीवार से बाकी का हिस्सा बाहर आ जाता था और वह रास्ता वापिस बंद हो जाता था। 
    
    आर्य ने खड़े होकर अपने लिए सही वक्त का चुनाव किया। जैसे ही सभी चक्कर बाहर आने के बाद रास्ते को बंद कर वापस लौटे, उनके बीच में थोड़ा थोड़ा रास्ता बन गया। आर्य ने तुरंत अपनी आंखें बंद की और फिर तेज गति से वहां से निकल गया। 
    
    वह अपनी तेज गति से हर एक चक्कर के नुकीले छोर के करीब से निकल रहा था। उसके और नुकीले छोर के बीच सिर्फ किचं मात्र की दूरी थी। मगर वह बचते हुए सुरक्षित दूसरी ओर पहुंच गया। 
    
    दूसरी और पहुंचते ही उसने राहत की सांस ली। उसने पीछे मुड़कर देखा तो वह चक्कर अपने पहले वाले क्रम में ही आ गए थे। यानी उनका बाहर आना और वापस अंदर जाना पहले की तरह होने लगा था। 
    
    आर्य ने उसे पीछे छोड़ा और गुफा में आगे जाने लगा। गुफा की दीवारें और फर्श में अभी भी कुछ नहीं बदला था। आर्य कुछ देर आगे चला तो उसे अजीब से भाले दिखे। वह भाले भी लाल रंग की रोशनी से बने हुए थे। वह कभी फर्श से निकलते थे तो कभी उनमें वापस चले जाते थे। उनके बाहर आने और वापिस चले जाने का अंतराल भी ज्यादा नहीं था। वह खुद को अपने ऊपर से जाने के लिए काफी कम समय दे रहे थे। आर्य ने यहां भी रुक कर धैर्य रखा और सही वक्त का इंतजार किया। जैसे ही सभी भाले अंदर चले गये उसने आंखें बंद की और फिर उन्हें खोलते हुए अपनी तेज गति का इस्तेमाल किया। अपनी इस तेज गति की वजह से वह एक बार फिर से भालों के बाहर आने से पहले दूसरी ओर जाने में कामयाब हो गया।
    
    उसके रास्ते में इसी तरह के कुछ और छोटे-मोटे पड़ाव आए। जितने भी पड़ाव आए थे वहां उसकी तेज गति ने उसकी मदद की। भालों के बाद घूमते हुए छुरा का पड़ाव आया जो छत पर लटकते हुए वामावर्त घूम रहा था। इसके बाद फिर जो पड़ाव आया था उसमें दिवार से रोशनी की दो सीधी लाइन ऊपर नीचे हो रही थी। यह किसी लेजर लाइट जैसा प्रतीत हो रहा था। 
    
    यहां भी आर्य ने अपना बचाव कर लिया। इन सब को पार करने के बाद आखिर में आर्य वहां पहुंच गया जहां आचार्य ज्ञरक ने उसे किसी कमरे के होने के बारे में बताया था। एक ऐसे कमरे के बारे में जो रोशनी से भरा हुआ था। वहां पहुंचते ही आर्य ने एक बार के लिए कमरे के दरवाजे को देखा, कमरे का दरवाजा बिल्कुल सामान्य दरवाजों की तरह था, वैसे दरवाजों की तरह जो यहां आश्रम के बाकी की झोपड़ियों ( कमरो) के आगे लगे हुए थे। 
    
    दरवाजे को देखने के बाद आर्य आगे बढ़ा और उसके बाहर लगीं कुंडी को पकड़कर उसे खोल दिया। कुंडी को पकड़ते ही अचानक अंदर से इतनी तेज रोशनी उसकी आंखों में आई की वह बुरी तरह से चोंधियां गया। उसे कुछ भी आगे दिखाई देना बंद हो गया था। बायां हाथ अपने आप ही आंखों के आगे आ गया था। रोशनी का कमरा कहलाने वाला यह कमरा भी कुछ कम नहीं था।
    
    ★★★
    
    
     
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    
    

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1 Comments

Arman Ansari

22-Dec-2021 04:36 PM

बेहतरीन कहानी हैसर

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